1950 - 2023
1950 - 2023
1950 - 2023
1950 - 2023
प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता, चर्चित छात्रनेता, अग्रणी आन्दोलनकारी, स्थापित ट्रेड यूनियनिस्ट, सुयोग्य अधिकारी, कुशल प्रबन्धक, अनुभवी राजनीतिज्ञ, पत्रकार, सम्पादक, लेखक, कहानीकार, कवि, गीतकार व टीवी वार्ताकार जैसी बहुत सी भूमिकाओं में रहते आये विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉo प्रभाकर उनियाल का जन्म 30 दिसंबर 1950 को टिहरी गढ़वाल जिले की बमुंड पट्टी के अंतर्गत छोटे पहाड़ी गांव ‘केमरीगांव’ में हुआ था। ज्योतिष व कर्मकाण्ड पर आश्रित अल्प आय वाले परिवार में 6 वर्ष की आयु में पहली कक्षा के बाद देहरादून नगर में आने पर तिलक रोड में दो छोटे कमरों के किराये के मकान में रहते हुए आपने सिटी बोर्ड के बेसिक एवं मिडिल स्कूल में पढ़ाई के उत्तर प्रदेश बोर्ड की हाई स्कूल परीक्षा विद्यालय में टॉप रह कर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा पूजा-पाठ, कथा-वार्ता व यज्ञ-अनुष्ठान आदि के अलावा ट्यूषन पढ़ा कर आपने संघर्ष के साथ शिक्षा जारी रखी।
डॉo प्रभाकर उनियाल जी समाज में सक्रिय रूप से शामिल थे और उन्हें साहसी, निष्ठावान, और नेतृत्व की विशेष बातो से जाना जाता। छात्र राजनीति, समग्रक्रान्ति आन्दोलन, और कर्मचारी-अधिकारी संघों के नेता के रूप में, उन्होंने सत्ता प्रतिष्ठान को चुनौती देने में सक्रिय योगदान दिया। वे न्याय के प्रति समर्पित थे और उन्होंने अनेक सामाजिक मुद्दों पर आवाज़ उठायी। प्रभाकर जी ने अपने आदर्शवादी सिद्धांतों को व्यवहार में उतारा था और उन्हें एक सहज, सहानुभूतिपूर्ण व्यक्तित्व का धनी माना जाता है।
उनका स्वभाव सत्य और न्याय के प्रति अथक समर्पण का प्रतीक था, जिससे वे सामाजिक सुधार और न्याय के पक्ष में लोगों को प्रेरित करते, उन्होंने नेतृत्व में सीधे और सहज दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया था, जिससे वे संगठनों और समूहों को प्रेरित करने में सक्षम थे। डॉ. प्रभाकर जी का योगदान सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भी था, जैसे कि अध्ययन और साहित्य। उनका व्यक्तित्व हमेशा प्रपंचरहित एवं पारदर्शी रहा।
पत्नी के लिए आदर्श पति, बच्चों के लिए मार्गदर्शक पिता और नाती-पोतों के लिए के लिए कहानीकार नाना दादा। उन्हें बच्चों के साथ जगहों पर घूमना बहुत पसंद था। उन्हें भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ।
वह अपने परिवार को दूरदराज के उत्तर पूर्व स्थानों से लेकर प्रमुख समुद्र तट स्थलों तक, दक्षिण की ओर और उत्तर की ओर तीर्थयात्रा के लिए कई स्थानों पर ले गए। उन्होंने तय किया कि उनके सभी बच्चे सरस्वती शिशु मंदिर और केंद्रीय विद्यालय में पढ़ेंगे। संघ के प्रति उनकी निष्ठा उनके बच्चों में आना स्वभाविक था।
उनकी अंतिम सेवा कर्मयोगी डॉ. नित्यानंद जी पर प्रकाशित पुस्तक थी। आखिरी समारोह जिसमें उन्होंने भाग लिया था, जहां वह मंच पर वक्ता भी थे, वह पुस्तक का उद्घाटन था।
डॉ. प्रभाकर उनियाल द्वारा लिखित प्रथम कहानी संग्रह 'आलू का झोल' की ई-कॉपी को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें
कहानी संग्रह 'रास का एहसास' को यहां पढ़ें या डाउनलोड करें
डाउनलोड करेंनीचे दिए गए लिंक पे क्लिक करे